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Yoga
Unit: Vivekanand
Scout Name: Kshitij Kumar
BIO DATA
Name : …Kshitij Kumar………………………
Father’s Name : …Mr. Kalindra Kumar.……………
District : …Varanasi District I…………………
State : Kendriya Vidyalaya Sangathan
Addresses
School : Kendriya Vidyalaya IFFCO
Phulpur, Prayagraj
Residence : TCS 15 IFFCO Colony Phulpur
Phulpur Prayagraj
……………………………………………………………….
Date of Joining : ……01-04-2021.……………………………………..
Date of Investiture : ……07-07-2021……………………………………..
Signature of Scout Master/Guide Captain Signature of Scout/Guide
________________________________________________________
COH
The specimen of COH of ……VIVEKANAND………… Scout Troop / Guide Company of Kendriya Vidyalaya ….…IFFCO PHULPUR……. met at (place)……Scout Corner at (Time)…07:50………….am/pm on (date) .............................................resolved to recommend the Scout / Guide …KSHITIJ KUMAR………………………………….…. for the………………………………………………………………... (Name of badge)
Members Signature Sign. theChairman
1. ………………………………..
2. ………………………………...
3. ………………………………. (Name of the Chairman)
4. ………………………………
Signature of SM / GC Signature of District Commissioner (S/G)
Date………………………
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YOGA
Syllabus
(1) Know the basics of Yoga.
(2) Know Asna and benefits.
(3) Show any two Yoga
Yoga
1. Yoga: Origin
There is no consensus on yoga's chronology or origins other than its development in ancient India. There are two broad theories explaining the origins of yoga. The linear model holds that yoga has Vedic origins (as reflected in Vedic texts), and influenced Buddhism. This model is mainly supported by Hindu scholars. According to the synthesis model, yoga is a synthesis of indigenous, non-Vedic practices with Vedic elements. This model is favoured in Western scholarship.
Speculations about yoga began to emerge in the early Upanishads of the first half of the first millennium BCE, with expositions also appearing in Jain and Buddhist texts c. 500 – c. 200 BCE. Between 200 BCE and 500 CE, traditions of Hindu, Buddhist, and Jain philosophy were taking shape; teachings were collected as sutras, and a philosophical system of Patanjaliyogasastra began to emerge. The Middle Ages saw the development of a number of yoga satellite traditions. It and other aspects of Indian philosophy came to the attention of the educated Western public during the mid-19th century.
Goals
The ultimate goals of yoga are stilling the mind and gaining insight, resting in detached awareness, and liberation (Moksha) from saṃsāra and duḥkha: a process (or discipline) leading to unity (Aikyam) with the divine (Brahman) or with one's self (Ātman). This goal varies by philosophical or theological system. In the classical Astanga yoga system, the ultimate goal of yoga is to achieve samadhi and remain in that state as pure awareness.
Yoga has five principal meanings:
(1) A disciplined method for attaining a goal
(2) Techniques of controlling the body and mind
(3) A name of a school or system of philosophy (darśana)
(4) With prefixes such as "hatha-, mantra-, and laya-, traditions specialising in particular yoga techniques
(5) The goal of Yoga practice
2. Asana
An asana is a body posture, used in both medieval hatha yoga and modern yoga. The term is derived from the Sanskrit word for 'seat'. While many of the oldest mentioned asanas are indeed seated postures for meditation, asanas may be standing, seated, arm-balances, twists, inversions, forward bends, backbends, or reclining in prone or supine positions. The asanas have been given a variety of English names by competing schools of yoga.
The traditional number of asanas is the symbolic 84, but different texts identify different selections, sometimes listing their names without describing them. Some names have been given to different asanas over the centuries, and some asanas have been known by a variety of names, making tracing and the assignment of dates difficult. For example, the name Muktasana is now given to a variant of Siddhasana with one foot in front of the other, but has also been used for Siddhasana and other cross-legged meditation poses. As another example, the headstand is now known by the 20th century name Shirshasana, but an older name for the pose is Kapalasana. Sometimes, the names have the same meaning, as with Bidalasana and Marjariasana, both meaning Cat Pose.
Kinds of YOGA
1 |
अधोमुखश्वानासन |
48 |
पद्मासन |
||
2 |
अधोमुखवृक्षासन |
49 |
परिघासन |
||
3 |
आकर्णधनुरासन |
50 |
पार्श्वकोणासन |
||
4 |
अनन्तासन |
51 |
पार्श्वोत्तनासन |
||
5 |
अञ्जनेयासन |
52 |
पाशासन |
||
6 |
अर्धचन्द्रासन |
53 |
पश्चिमोत्तानासन |
||
7 |
अष्टाङ्ग नमस्कार |
54 |
पिञ्चमयूरासन |
||
अष्टावक्रासन |
55 |
प्रसारित पादोत्तानासन |
|||
9 |
Baddha
Konasana |
बद्धकोणासन |
56 |
राजकपोतासन |
|
10 |
बकासन, |
57 |
शलभासन |
||
11 |
बालासन |
58 |
सालम्बसर्वाङ्गासन |
||
12 |
Bhairavasana |
भैरवासन |
59 |
समकोणासन |
|
13 |
भरद्वाजासन |
60 |
शवासन |
||
14 |
भेकासन |
61 |
सेतुबन्धसर्वाङ्गासन |
||
15 |
भुजंगासन |
62 |
Siddhasana (men), |
सिद्धासन |
|
16 |
भुजपीडासन |
63 |
सिंहासन |
||
17 |
Bidalasana |
बिडालासन |
64 |
Shirshasana |
शीर्षासन |
18 |
चतुरङ्गदण्डासन |
65 |
सुखासन |
||
19 |
दण्डासन |
66 |
सुप्त पादाङ्गुष्ठासन |
||
20 |
धनुरासन |
67 |
सुर्य नमस्कार |
||
21 |
दुर्वासासन |
68 |
स्वस्तिकसन |
||
गर्भासन |
69 |
ताडासन |
|||
23 |
गरुडासन |
70 |
टिट्टिभासन |
||
24 |
गोमुखासन |
71 |
Trikonasana, |
त्रिकोणासन, |
|
25 |
गोरक्षासन |
72 |
त्रिविक्रमासन |
||
26 |
हलासन |
73 |
तुलासन |
||
27 |
हनुमनासन |
74 |
उपविष्टकोणासन |
||
28 |
जानुशीर्षासन |
75 |
ऊर्ध्वधनुरासन, चक्रासन |
||
29 |
ञटर परिवर्तनासन |
76 |
ऊर्ध्वमुखश्वानासन |
||
30 |
कपोतासन |
77 |
उष्ट्रासन |
||
31 |
कर्णपीडासन |
78 |
उत्कटासन |
||
32 |
कौण्डिन्यसन |
79 |
उत्तानासन |
||
33 |
क्रौञ्चासन |
80 |
हस्तपादाङ्गुष्ठासन |
||
34 |
कुक्कुटासन |
81 |
वज्रासन |
||
35 |
कूर्मासन |
82 |
वसिष्ठासन |
||
36 |
लोलासन |
83 |
विपरीत दण्डासन |
||
37 |
मकरासन |
84 |
विपरीतकरणि |
||
38 |
मालासन |
85 |
विपरीतवीरभद्रासन |
||
39 |
मन्दुकासन |
86 |
वीरभद्रासन |
||
40 |
मरीच्यासन |
87 |
वीरभद्रासन II |
||
42 |
मत्स्यासन |
88 |
वीरभद्रासन III |
||
43 |
मत्स्येन्द्रासन |
89 |
वीरासन |
||
मयूरासन |
90 |
वृक्षासन |
|||
45 |
मुक्तासन |
91 |
वृश्चिकासन |
||
46 |
नटराजासन |
92 |
योगनिद्रासन |
||
47 |
नावासन |
95 |
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Some Important Asanas:
1. Ardha Chandrasana/अर्धचन्द्रासन
अर्धचंद्रसन एक विशेष योग मुद्रा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसे करने के विभिन्न तरीके हैं। आप इनमें से किसी या सभी का अभ्यास कर सकते हैं। इसे अंग्रेजी मे हाफ मून पोज़ के नाम से भी जाना जाता है।
अर्धचन्द्रासन संस्कृत के शब्दो से मिल कर बना "अर्ध" का अर्थ है "आधा" ; "चंद्र" का अर्थ "चंद्रमा" और आसन का अर्थ है योग करने की मुद्रा।
अर्धचन्द्रासन कैसे करे
सीधे खड़े हो जाएं, एड़ियां मिलीं हुईं, पंजों में थोड़ा सा फासला रखें।
दोनों भुजाओं को ऊपर की ओर खींचते हुए हाथ जोड़कर नमस्कार की स्थिति में आ जाएं।
अब अपने हाथों को ऊपर की ओर पूरा खिंचाव देते हुए, श्वास भरकर, पहले बायीं ओर जितना अधिक मोड़ सकते हैं, मोड़ें।
श्वास छोड़ते हुए वापस आएं और फिर इसी प्रकार दायीं, पीछे की ओर करें। ध्यान रखें, आगे की ओर नहीं झुकना है। ध्यान मणिपूर-चक्र पर केंद्रित करें
अर्धचन्द्रासन के लाभ :
इस आसन से बड़ी आंत, जिगर तथा तिल्ली पर विशेष प्रभाव पड़ता है।
मेरुदंड की पेशियों और स्नायुओं पर खिंचाव पड़ने से लचक पैदा होती है।
कमर के पुट्ठों को पुष्ट बनाने में पर्याप्त सहायता मिलती है।
इससे कंठ के तंतुओं और ग्रंथियों का अच्छा व्यायाम हो जाता है।
2. Astavakrasana/अष्टावक्रासन
अष्टवक्रासन करने का तरीका: अष्टवक्रासन देखने में भले ही काफी मुश्किल लगता है, लेकिन अगर इसकी सही विधि जान लेंगे तो आप भी इसे आसानी से कर सकते हैं। इस आसन को सही तरीके से करना बहुत जरूरी होता है, तभी आपको इसके पूरे फायदे मिल सकते हैं। जानें इस आसन को करने का सही तरीका-
अष्टवक्रासन करने के लिए सबसे पहले जमीन पर एक मैट बिछा लें।
मैट पर पैरों को सीधा करके बैठ जाएं।
दोनों पैरों को पंजों से इंटरलॉक कर लें।
अब अपने दाएं हाथ को पैरों में बीच डालकर हथेली को जमीन पर रखें।
बाएं हाथ की हथेली को कंधों के समानांतर जमीन पर मजबूती से रखें।
अब धीरे-धीरे हाथों पर जोर देकर शरीर और पैरों को ऊपर उठाने की कोशिश करें।
इस अवस्था में 2-3 बार लंबी गहरी सांस (Deep Breathing) लें और छोड़ें।
इसके बाद आप अपनी प्रारंभिक अवस्था में आ सकते हैं।
इस प्रक्रिया को 3-5 बार दोहराया जा सकता है।
3. Dhanurasana/धनुरासन
धनुरासन योग पेट के बल लेट कर किये जाने वाले आसनों में एक महत्वपूर्ण आसान जो अनेकों स्वास्थ्य फायदे के लिए जाना जाता है। चूँकि इसका आकर धनुष के सामान लगता है इसलिए इसको धनुरासन के नाम से पुकार जाता है। इसको Bow पोज़ के नाम से भी जाना जाता है ।
धनुरासन योग की विधि
शुरुवाती दौड़ में लोग धनुरासन करने से घबराते हैं लेकिन अगर आप इनके सरल तरीकों को जान जाए तो आसानी से इसका अभ्यास कर सकते हैं।
सबसे पहले आप पेट के बल लेट जाए।
सांस छोड़ते हुए घुटनों को मोड़े और अपने हाथ से टखनों को पकड़े।
सांस लेते हुए आप अपने सिर, चेस्ट एवं जांघ को ऊपर की ओर उठाएं।
अपने शरीर के लचीलापन के हिसाब से आप अपने शरीर को और ऊपर उठा सकते हैं।
शरीर के भार को पेट निचले हिस्से पर लेने की कोशिश करें।
जब आप पूरी तरह से अपने शरीर को उठा लें तो पैरों के बीच की जगह को कम करने की कोशिश करें।
धीरे धीरे सांस ले और धीरे धीरे सांस छोड़े। अपने हिसाब से आसन को धारण करें।
जब आप मूल स्थिति में आना हो तो लम्बी गहरी सांस छोड़ते हुए नीचे आएं।
यह एक चक्र पूरा हुआ।
इस तरह से आप 3-5 चक्र करने की कोशिश करें।
धनुरासन योग के लाभ –
अगर आप सही तरीके से धनुरासन करते हैं तो इसका मतलब यह हुआ की आप भुजंगासन एवं शलभासन दोनो एक साथ कर रहे हैं और दोनों का लाभ उठा रहे हैं। यहां पर धनुरासन के कुछ महत्वपूर्ण फायदे के बारे बताया जा रहा है।
धनुरासन मोटापा घटाने के लिए: यह आसन वज़न कम करने के लिए एक उत्तम योगाभ्यास है। इसके नियमित अभ्यास से पेट की चर्बी कम होती है और आपके पेट को चुस्त-दुरुस्त बनाता है।
धनुरासन डायबिटीज के लिए : यह आसन मधुमेह के रोगियों के लिए अति लाभदायक है। इसके अभ्यास से पैंक्रियास उत्तेजित होता है और इन्सुलिन के स्राव में मदद मिलती है जो शुगर के संतुलन सहायक है। इसके अभ्यास से डायबिटीज टाइप1 और डायबिटीज टाइप 2 दोनों में फायदा पहुँचता है।
धनुरासन कमर दर्द के लिए: यह आसन पीठ दर्द के लिए रामबाण योग है । अगर इसका आप रोजाना अभ्यास करते हैं तो हमेशा हमेशा के लिए कमर दर्द की परेशानी से निजात मिल सकती है। यह पीठ के लिगामेंट्स, मांसपेशियों एवं तंत्रिकाओं में खिंचा व ले कर आता है और पुरे स्पाइनल कॉलम में एक नई जान फूंकता है।
धनुरासन अस्थमा के लिए: यह आसन अस्थमा रोगियों के लिए बहुत लाभदायी है। इसके अभ्यास से सीने में अच्छा खासा खिंचाव आता है और फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाता है जो अस्थमा रोगियों के लिए बहुत जरूरी है ।
धनुरासन योग स्लीप डिस्क के लिए: इस आसन के अभ्यास से स्लिप डिस्क में बहुत हद तक राहत मिल सकती है।
धनुरासन कब्ज के लिए: इसके अभ्यास से कब्ज एवं अपच को दूर किया जा सकता है। यह आसान सही तरीके से एंजाइम के स्राव में मदद करता है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
धनुरासन विस्थापित नाभि के लिए: यह योगाभ्यास विस्थापित नाभि अपनी जगह पर लाने के लिए लाभदायक है।
धनुरासन थाइरोइड के लिए: यह योगासन थाइरोइड एवं अधिवृक्क ग्रंथियों को उत्तेजित करता है तथा इसके हॉर्मोन के स्राव में मदद करता है।
4. Mayurasana/ मयूरासन
मयूरासन हठ योग के प्राचीन योगासनो में से एक है। मयूरासन शब्द संस्कृत के दो शब्दों से बना है "मयूर" जिसका अर्थ है मोर और "आसन" जिसका अर्थ योग आसान करनी की मुद्रा।
यह बिना बैठने वाला आसन है। इस आसन को मयूरासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि जब आप इस आसन को करते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई मोर अपने पंखों को नीचे की ओर लेकर चल रहा हो। यह आसान जटिल दिखती है लेकिन वास्तव में है नहीं।
मयूरासन करने की विधि
फर्श पर घुटने टेकें, और अपनी एड़ी पर बैठें।
आगे की ओर झुकें और अपनी उंगलियों को पीछे की ओर घुमाते हुए अपनी हथेलियों को फर्श पर दबाएं। हथेलियों को दोनों जाँघों के बीच में रखना चाहिए। कोहनी पेट पर आराम करना चाहिए।
पैरों को एक के बाद एक धीरे-धीरे पीछे ले जाएं ताकि वे सीधे हों और पैर की उंगलियां फर्श को छूएं।
पेट की मांसपेशियों को कस कर और भार को पूरी तरह हथेलियों पर टिकाकर पूरे शरीर को ऊपर उठाएं। शरीर को क्षैतिज और जमीन के समानांतर बनाने की कोशिश करें। पेट की मांसपेशियों पर कोहनियों से शरीर संतुलित रहता है। भार पूरी तरह से प्रकोष्ठ और हथेलियों द्वारा वहन किया जाता है।
शुरुआत में इस मुद्रा को 5 सेकंड तक बनाए रखने का प्रयास करें। धीरे-धीरे, इसे 1 मिनट या उससे अधिक तक बढ़ाया जा सकता है।
मयूरासन के फायदे
योग गुरु बी.के.एस. अयंगर के अनुसार, यह आसन पेट के अंगों में रक्त संचार को ठीक रखने में मदद करता है।
बी.के.एस. अयंगर ने यह भी दावा किया था कि यह आसन पाचन में भी सुधार करता है, विषाक्त पदार्थों को जमा होने से रोकता है और पेट की बीमारी को ठीक करता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि इससे मधुमेह जैसी बीमारी में भी फायदा होता है।
घेरंडा संहिता बताती है कि मयूरासन योगासन शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद करती है।
यह कोहनी, रीढ़, कलाई और कंधों की मांसपेशियों की ताकत को बढ़ाने में भी मदद करता है।
अन्य योग आसनों की तरह यह आसन भी तनाव और चिंता को दूर करने में मदद करता है।
5. Padmasana/पद्मासन
कमल या पद्म का उपयोग भारत में आदिकाल से ही धर्म और काल के महत्वपूर्ण प्रतीक चिह्न के रूप में होता रहा है। सदियां बीतने के बाद भी कमल को वैराग्य, पुनर्जन्म, सुंदरता, शुद्धता, आध्यात्मिकता, निर्वाण, धन-संपदा और लौकिक नवीनीकरण का प्रतीक माना जाता है।
इजिप्ट से लेकर भारत तक, कमल कई महान कथाओं और घटनाओं का अहम हिस्सा रहा है। बात अगर हिंदू प्रतीक चिह्नों की करें तो धन की देवी लक्ष्मी कमल पर बैठी दिखाई देती हैं। अगर हम बौद्ध धर्म की बात करें तो कहा जाता है कि जहां भी महात्मा बुद्ध चरण रखते थे, वहीं पर कमल फूट निकलता था।
पद्मासन शब्द दो अलग शब्दों से मिलकर बना है। पद्मासन में पहला शब्द पद्म है, जिसका अर्थ कमल होता है। जबकि दूसरा शब्द आसन है, जिसका अर्थ बैठना होता है। पद्मासन में योगी ऐसी स्थिति में बैठता है जैसे कमल का फूल।
पद्मासन करने की विधि
1. योग मैट पर सीधे बैठ जाएं। रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और टांगों को फैलाकर रखें।
2. धीरे से दाएं घुटने को मोड़कर बायीं जांघ पर रखें। एड़ी पेट के निचले हिस्से को छूनी चाहिए।
3. ऐसा ही दूसरी पैर के साथ भी करते हुए पेट तक लेकर आएं।
4. दोनों पैरों के क्रॉस होने के बाद अपने हाथों को मनपसंद मुद्रा में रखें।
5. सिर और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
6. लंबी और गहरी सांसें लेते रहें।
7. सिर को धीरे से नीचे की तरफ ले जाएं। ठोड़ी को गले से छूने की कोशिश करें।
8. बाद में इसी आसन को दूसरे पैर को ऊपर रखकर अभ्यास करें।
पद्मासन करने के फायदे
पद्मासन करने से शरीर को बहुत जबरदस्त फायदे मिलते हैं। अगर आप कभी अशांत और बेचैन महसूस कर रहे हों तो पद्मासन का अभ्यास करें। ये आपके मन को शांत करने में मदद करेगा। योगी इस आसन को अलौकिक ऊर्जा प्राप्त करने, मेडिटेशन या ध्यान करने, चक्र या कुंडलिनी को जाग्रत करने के लिए करते हैं।
पद्मासन बहुत ही शक्तिशाली आसन है, इस आसन का अभ्यास भगवान शिव को भी करते दिखाया गया है। ये कमर और हृदय रोगों के लिए बेहतरीन आसन है। इसके तमाम भौतिक और आध्यात्मिक लाभ योगशास्त्र में बताए गए हैं। ये मेडिटेशन के लिए बताए गए बेहतरीन आसनों में से एक है।
6. Shalabhasana/शलभासन
योग (Yoga) का नियमित रूप से अभ्यास करने से शरीर स्वस्थ रहता है और इससे बड़ी बड़ी बीमारियों से बचा जा सकता हैं। योग की अनेक मुद्रा हैं, जिसमें 'शलभासन' (Salabhasana) एक प्रमुख आसन है। इस आसन से हमारे शरीर की मांसपेशिया मजबूत (Strong Muscles) होती हैं और पीठ दर्द (Back Pain) जैसी समस्या को दूर किया जा सकता हैं।
शलभासन एक संस्कृत भाषा का शब्द है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें पहले शब्द “शलभ” का अर्थ “टिड्डे या कीट (Locust )” और दूसरा शब्द आसन का अर्थ होता है “मुद्रा”, अर्थात शलभासन का अर्थ है टिड्डे के समान मुद्रा होना।
इस आसन को अंग्रेजी में “ग्रासहोपर पोज़” (Locust Pose or Grasshopper Pose) बोलते हैं। इससे आपकी रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है। यह हठ योग की श्रेणी में आता है। यह मुद्रा देखने में सरल हो सकती है, पर करने में आपको थोड़ी कठिनाई आ सकती है।
शलभासन करने का तरीका (How To Do Salabhasana)
1. शलभासन करने लिए सबसे पहले आप किसी साफ स्थान पर चटाई बिछा कर उलटे पेट के बल लेट जायें। यानि आपकी पीठ ऊपर की ओर रहे और पेट नीचे जमीन पर रहे।
2. अपने दोनों पैरो को सीधा रखें और अपने पैर के पंजे को सीधे तथा ऊपर की ओर रखें।
3. अपने दोनों हाथों को सीधा करें और उनको जांघों के नीचे दबा लें, यानि अपना दायां हाथ दायीं जांघ के नीचे और बायां हाथ बायीं जांघ के नीचे दबा लें।
4. अपने सिर और मुंह को सीधा रखें।
5. फिर अपने को सामान्य रखें और एक गहरी सांस अंदर की ओर लें।
6. अपने दोनों पैरों को ऊपर की ओर उठाने की कोशिश करें, जितना हो सकता हैं उतना अपनी अधिकतम ऊंचाई तक पैरों को ऊपर करें।
7. अगर आप योग अभ्यास में नये हैं, तो आप पैरों को ऊपर करने के लिए अपने हाथों का सहारा ले सकते हैं, इसके लिए आप अपने दोनों हाथों को जमीन पर टिका के अपने पैरों को ऊपर कर सकते हैं।
8. आप इस मुद्रा में कम से कम 20 सेकंड तक रहने की कोशिश करें, इसे आप अपने क्षमता के अनुसार कम ज्यादा कर सकते हैं।
9. इसके बाद आप धीरे धीरे अपनी सांस को बाहर छोड़ते हुए पैरों को नीचे करते जाएं।
10. और पुनः अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं। इस अभ्यास को 3-4 बार दोहराएं।
शलभासन करने के फायदे (Benefits of Salabhasana)
वजन कम करता है : शलभासन वजन को कम करने के लिए एक अच्छी योग मुद्रा मानी जाती है। यह हमारे शरीर में चर्बी को खत्म करने में मदद करती है।
मांसपेशियों मजबूत करता है : हमारे शरीर की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए शलभासन एक अच्छी मुद्रा है। यह हमारे शरीर के हाथों, जांघों, पैरों और पिंडरी को मजबूत करता है, इसके साथ यह पेट की चर्बी को कम करके उसे सुंदर बनाता है। रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने के लिए शलभासन एक अच्छा योग हैं।
बीमारियों को ठीक करता है : शलभासन से अनेक प्रकार की बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। यह हमारे पेट के पाचन तंत्र को ठीक करता करता है, जिससे पेट संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं, इसके साथ यह कब्ज को ठीक करता है, शरीर में अम्ल और क्षार के संतुलन को बनाये रखता है। यह मूत्र संबंधी विकारों को सुधारने में मदद करता है और रीढ़ की बीमारियों को ठीक करता हैं।
स्वस्थ शरीर के लिए फायदेमंद : शलभासन से हमारा पूरा शरीर स्वस्थ रहता है। यह मुद्रा पूरे शरीर को सक्रिय करती है। हमारे शरीर में रक्त के संचालन को बढ़ाती है। शलभासन योग करने से बीमारियां आपसे दूर रहती हैं।
7. Shavasana/शवासन
शवासन, योग विज्ञान का बेहद महत्वपूर्ण आसन है। शवासन को किसी भी योग सेशन के बाद बतौर अंतिम आसन किया जाता है। 'शवासन' शब्द दो अलग शब्दों यानी कि 'शव' (corpse) और 'आसन' से मिलकर बना है। 'शव' का शाब्दिक अर्थ होता है मृत देह जबकि आसन का अर्थ होता है 'मुद्रा' या फिर 'बैठना'।
आम धारणा है कि शवासन बेहद सरल आसन है। जबकि हकीकत ये है कि शवासन योग विज्ञान के सबसे कठिन आसनों में से एक है। ये आसन देखने में बेहद सरल लगता है लेकिन इसमें सिर्फ लेटना ही नहीं होता है बल्कि अपने मन की भावनाओं और शरीर की थकान दोनों पर एक साथ नियंत्रण पाना होता है।
शवासन को योगा सेशन के बाद किया जाता है। इसे करने से डीप हीलिंग के साथ ही शरीर को गहरे तक आराम भी मिलता है। इस आसन को तब भी किया जा सकता है जब आप बुरी तरह से थके हों और आपको थोड़ी ही देर में वापस काम पर लौटना हो। शवासन का अभ्यास न सिर्फ आपको ताजगी बल्कि ऊर्जा भी देगा।
शवासन करने की विधि (Step by Step Instructions)
1. योग मैट पर पीठ के बल लेट जाएं। ये सुनिश्चित करें कि आसन करने के दौरान कोई भी आपको डिस्टर्ब न करे। आप बिना किसी समस्या के आराम से लेटे हों। लेकिन किसी तकिया या कुशन का इस्तेमाल न करें। सबसे अच्छा यही है कि आप सख्त सतह पर लेटे हुए हों।
2. अपनी आंखें बंद कर लें।
3. दोनों टांगों को ध्यान से अलग-अलग कर लें। इस बात का ध्यान रखें कि आप पूरी तरह से रिलैक्स हों और आपके पैरों के दोनों अंगूठे साइड की तरफ झुके हुए हों।
4. आपके हाथ आपके शरीर के साथ ही हों लेकिन थोड़ी दूर हों। हथेलियों को खुला लेकिन ऊपर की तरफ रखें।
5. अब धीरे-धीरे शरीर के हर हिस्से की तरफ ध्यान देना शुरू करें, शुरुआत पैरों के अंगूठे से करें। जब आप ऐसा करने लगें, तो सांस लेने की गति एकदम धीमी कर दें। धीरे-धीरे आप गहरे मेडिटेशन में जाने लगेंगे। लेकिन जैसे ही आपको आलस या उबासी आए सांस लेने की गति तेज कर दें। आपको शवासन करते हुए कभी भी सोना नहीं है।
6. सांस लेने की गति धीमी लेकिन गहरी रखें। ये आपको धीरे-धीरे पूरी तरह रिलैक्स करने लगेगी। मन में ख्याल लाएं कि जब आप सांस ले रहे हैं तो वह पूरे शरीर में फैल रही है। आप और ज्यादा ऊर्जावान होते जा रहे हैं। लेकिन जब आप सांस छोड़ रहे हैं, शरीर शांत होता जा रहा है। आपका फोकस सिर्फ खुद और अपने शरीर पर ही रहेगा। बाकी सारे कामों को भूल जाएं। इस स्थिति के सामने सरेंडर कर दें और आनंद लें। लेकिन ध्यान दें आपको सोना नहीं है।
7. 10-12 मिनट के बाद, जब आपका शरीर पूरी तरह से रिलैक्स हो जाए और नई ताजगी को महसूस करने लगे तो, एक तरफ को करवट ले लें। दोनों आंखों को बंद रखें। एक मिनट तक इसी स्थिति में बैठे रहें। इसके बाद धीरे-धीरे उठें और फिर पालथी मारकर या सुखासन में बैठ जाएं।
8. कुछ गहरी सांसें लें और आंखें खोलने से पहले आसपास चल रहे माहौल का जायजा लें। इसके बाद धीरे-धीरे आंखें खोल दें।
शवासन करने के लाभ
1. शरीर को मेडिटेशन की स्थिति में लाए
2. शरीर को रिलैक्स और शांत करता है
3. रक्तचाप और एंग्जाइटी घटाए
4. एकाग्रता और मेमोरी बढ़ाता है
5. ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है
8. Shirshasana/शीर्षासन
शीर्ष का मतलब होता है सिर (माथा) और आसन योगाभ्यास के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शीर्षासन के जितने भी फायदे गिनाये जाएं कम है। इसकी लाभ और उपयोगिता इस बात से समझा जा सकता है कि आसनों की दुनिया में इस योगाभ्यास को राजा के नाम से जाना जाता है। यह योगाभ्यास आपको सिर से लेकर पैर की उँगुलियों तक फायदा पहुँचाता है।
शीर्षासन विधि
1. सबसे पहले आप अपने योग मैट के आगे बैठ जाए।
2. अब आप अपने अंगुलियों को इन्टर्लाक करें और अपने सिर को उस पर रखें।
3. धीरे धीरे अपने पैरों को इन्टर्लाक अंगुलियों का मदद लेते हुए ऊपर उठायें और इसे सीधा करने की कोशिश करें।
4. शरीर का पूरा भार अब आप इन्टर्लाक किये हुए अंगुलियों और सिर पर लें।
5. इस अवस्था में कुछ देर तक रुकें और फिर धीरे धीरे घुटनों को मुड़ते हुए पैरों को नीचे लेकर आयें।
6. यह एक चक्र हुआ।
7. आप इसे 3 से 5 बार कर सकते हैं।
शीर्षासन योग के लाभ – Sirsasana benefits
जितने भी योगाभ्यास है उसमें शीर्षासन को किंग कहा गया है। इसी बात से इसके फायदे और महत्व के बारे में जाना जा सकता है।
शीर्षासन वजन के कंट्रोल में: इस योगाभ्यास के करने से थाइरोइड एवं पारा थाइरोइड अंतःस्रावी गंथियों को स्वस्थ बनाने में मदद मिलती है और हॉर्मोन का सही तरीके से स्राव होने लगता है। मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है और शरीर के वजन को बढ़ने से रोकता है।
शीर्षासन रोके बालों का गिरना: शीर्षासन बालों को सूंदर बनाता है। शीर्षासन अभ्यास से मस्तिष्क वाले भाग में ऑक्सीजन का प्रवाह अधिक हो जाता है और मस्तिष्क को उपयुक्त पोषक तत्व पहुँचता है। शीर्षासन न केवल बालों के झड़ने को ही नहीं रोकता बल्कि बालों से सम्बंधित और समस्याओं जैसे काले व घने बाल, लम्बे बाल, बालों का कम झरना, बालों को सफेद होने से रोकना इत्यादि में काम आता है।
त्वचा के निखार में शीर्षासन: यह आपके त्वचा को मुलायम, खूबसूरत और ग्लोइंग प्रदान करता है। इसके अभ्यास से चेहरे वाले हिस्से में खून का बहाव अच्छा हो जाता है और शरीर के पुरे अग्र भाग में पोषक तत्व सही रूप में पहुँच पाता है।
शीर्षासन मेमोरी बढ़ाने में: इस आसन के अभ्यास से सिर में रक्त का प्रवाह बढ़ता है जिससे स्मृति बढ़ती है।
शीर्षासन तंत्रिका तंत्र के लिए: यह आसन तंत्रिका तंत्र को मजबूत करता है।
शीर्षासन अंतःस्रावी गंथियों के लिए: यह आसन पिटुइटरी ग्रन्थि को स्वस्थ रखता है और इसके हॉर्मोन स्राव में मदद करता है। चूंकि शीर्षासन मास्टर ग्लैंड है इसलिए यह सभी अंतःस्रावी गंथियों को विनियमित करता है।
शीर्षासन पाचन तंत्र के लिए: यह पाचन तंत्र को मजबूत करते हुए पाचन के लिए लाभकारी है।
पीयूष ग्रन्थि के स्वस्थ में शीर्षासन: यह पीयूष (पिटुइटरी) ग्रंथि एवं शीर्ष ग्रंथि के कामकाज को बेहतर करता है।
यकृत के स्वस्थ के लिए शीर्षासन: यह योगाभ्यास यकृत एवं प्लीहा के रोगों में लाभप्रद है।
एकाग्रता को बढ़ाने के लिए शीर्षासन: यह एकाग्रता की क्षमता बढ़ाता है तथा अनिद्रा में सहायक है।
9. Tadasana/ताडासन
ताड़ासन योग क्या है
ताड़ासन योग की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। यह पूरी शरीर को लचीला बनाता है और साथ ही साथ कड़ा एवं सख्त होने से रोकता है। यह एक ऐसी योगासन है जो मांसपेशियों को ही नही बल्कि सूछ्म मांसपेशियों को भी बहुत हद तक लचीलापन बनाता है। और इस तरह से शरीर को हल्का तथा विश्राम एवं जोड़ों को ढीला करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। यह योगाभ्यास आपको चुस्त दुरुस्त ही नहीं करता बल्कि आपके शरीर को सुडौल एवं खूबसूरती प्रदान करता है। शरीर में जहाँ तहाँ जो अतरिक्त चर्बी जमी हुई है उसको पिघलता है और आपके पर्सनालिटी में नई निखार ले कर आता है। लाभ के साथ साथ इसके कुछ सावधानियां भी हैं।
ताड़ासन योग के विभिन्य नाम
ताड़ासन को विभिन्य नामों से जाना जाता है जैसे:
पर्वतआसन: इसे पर्वत योग मुद्रा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि पर्वत की तरह यह स्थिर एवं शांत प्रतीत होता है।
पाम ट्री योग: इसे पाम ट्री के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि खजूर के पेड़ की तरह लम्बा जान पड़ता है।
स्वर्गीय योग: इसे स्वर्गीय मुद्रा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसमें साधक अपने आप को स्वर्ग की ओर खींचता हुआ प्रतीत होता है।
ताड़ासन कैसे करें
ताड़ासन को अभ्यास करना बहुत आसान है। इसके ज़्यदा से ज़्यदा फायदा पाने के लिए इसे आपको सही विधि से करना होगा।
· इसके लिए सबसे पहले आप खड़े हो जाए और अपने कमर एवं गर्दन को सीधा रखें।
· अब आप अपने हाथ को सिर के ऊपर करें और सांस लेते हुए धीरे धीरे पुरे शरीर को खींचें।
· खिंचाव को पैर की अंगुली से लेकर हाथ की अंगुलियों तक महसूस करें।
· इस अवस्था को कुछ समय के लिए बनाये रखें ओर सांस ले सांस छोड़े।
· फिर सांस छोड़ते हुए धीरे धीरे अपने हाथ एवं शरीर को पहली अवस्था में लेकर आयें।
· इस तरह से एक चक्र पूरा हुआ।
· कम से कम इसे तीन से चार बार प्रैक्टिस करें।
ताड़ासन योग के फायदे
ताड़ासन मुद्रा के जितने भी फायदे गिनाए जाए कम है। यहाँ इसके कुछ महत्वपूर्ण लाभ के बारे में जिक्र किया जा रहा है।
ताड़ासन वजन कम करने के लिए: अगर इस आसन को सही तरह से अभ्यास किया जाए तो बहुत हद तक पेट की चर्बी को कम करने में मदद मिल सकती है। पेट की चर्बी ही नहीं यह पुरे शरीर के अतरिक्त वसा को कम करने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है। इस आसन को सही तरीके से करने से पुरे बॉडी में खिंचाव आता है और आपके शरीर को एक सुडौल दिशा में ले जाता है।
ताड़ासन हाइट बढ़ाने के लिए: यह आसन बच्चों की हाइट बढ़ाने के लिए अतिउत्तम योगाभ्यास है। उचाई बढ़ाने के लिए 6 से 20 साल के बच्चों को यह आसन करवाया जाता है। अगर आप इसको किसी योग विशेषज्ञ के सामने करते है तो परिणाम की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है।
ताड़ासन पीठ की दर्द के लिए: यह आसन पीठ की दर्द के लिए बहुत लाभकारी है। अगर इसका सही तरह से अभ्यास किया जाए तो पीठ की दर्द से हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है। इसमें आप ऊपर की ओर अपने आप को खिंचते है और जहाँ पर दर्द है वहां खिंचाव को महसूस करने की कोशिश करते हैं।
ताड़ासन नसों एवं मांसपेशियों की दर्द के लिए : अगर आप नसों की दर्द से परेशान हैं तो आपको पर्वतासन करनी चाहिए। यह नसों की दर्द को ही कम नहीं करता बल्कि मांसपेशियों के साथ नसों को मजबूत और सबल बनाता है। मांसपेशियों की ऐंठन और मरोड़ जैसी समस्याओं को भी दूर करने मेीं मदद करता है।
घुटने की दर्द से राहत: अगर आप घुटने की दर्द से परेशान हैं तो आपको इस आसन का अभ्यास करनी चाहिए। लेकिन ध्यान रहे इसमें आपको अपने तलवे को जमीन पर ही रखनी है और पैर की अंगुलियों पर आकर इस आसन को नहीं करनी है।
चलने की कला सिखाता है: बहुत सारें लोगों को पता नहीं है की चलना कैसे चाहिए। खास कर इस पर विशेष ध्यान डॉ. बी के अयंगर के योगभ्यास में मिलता है। इस आसान की प्रैक्टिस करने से आपको चलने की आर्ट आती है और साथ ही साथ आप बहुत सारी परेशानियों से दूर हो जाते हैं।
ताड़ासन एकाग्रता और संतुलन के लिए: इस योग को ठीक तरह से करने से आपकी एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है। नियमित रूप से इसका अभ्यास करने से शरीर में संतुलन का अच्छा खासा प्रभाव देखा जा सकता है।
ताड़ासन पैरों को मजबूती देता है : ताड़ासन योग पैरों की समस्यां जैसे सूजन, दर्द, सुन्न, जलन और झनझनाहट के लिए काफी लाभदायक है है।
ताड़ासन सायटिका के लिए: इस आसन को नियमित रूप से किया जाए तो सायटिका का दर्द बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
ताड़ासन दर्द और पीड़ा के लिए: इसके अभ्यास करने से पुरे शरीर का दर्द व पीड़ा को कम किया जा सकता है।
10. Uttanasana/उत्तानासन
उत्तानासन (Uttanasana) भी योग विज्ञान का ऐसा ही आसन है। उत्तानासन को अंग्रेजी में Intense Forward-Bending Pose, Intense Stretch Pose, Standing Forward Bend, Standing Forward Fold Poseया Standing Head to Knees Pose भी कहा जाता है। ये आसन पूरे शरीर को अच्छी स्ट्रेच देता है और दिमाग में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ाने में भी मदद करता है।
उत्तानासन करने के फायदे
· ये आसन पीठ, हिप्स, पिंडली और टखनों को अच्छा स्ट्रेच देता है।
· दिमाग को शांत करता है और एंग्जाइटी से राहत देता है।
· सिरदर्द और इंसोम्निया की समस्या होने पर आराम देता है।
· पेट के भीतरी पाचन अंगों को अच्छी मसाज देकर पाचन सुधारता है।
· किडनी और लिवर को सक्रिय करता है।
· जांघों और घुटनों को भी मजबूत बनाता है।
· ये आसन हाई ब्लड प्रेशर, अस्थमा, नपुंसकता, साइनोसाइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस को ठीक करता है।
उत्तानासन करने की विधि
o योग मैट पर सीधे खड़े हो जाएं और दोनों हाथ हिप्स पर रख लें।
o सांस को भीतर खींचते हुए घुटनों को मुलायम बनाएं।
o कमर को मोड़ते हुए आगे की तरफ झुकें।
o शरीर को संतुलित करने की कोशिश करें।
o हिप्स और टेलबोन को हल्का सा पीछे की ओर ले जाएं।
o धीरे-धीरे हिप्स को ऊपर की ओर उठाएं और दबाव ऊपरी जांघों पर आने लगेगा।
o अपने हाथों से टखने को पीछे की ओर से पकड़ें।
o आपके पैर एक-दूसरे के समानांतर रहेंगे।
o आपका सीना पैर के ऊपर छूता रहेगा।
o सीने की हड्डियों और प्यूबिस के बीच चौड़ा स्पेस रहेगा।
o जांघों को भीतर की तरफ दबाएं और शरीर को एड़ी के बल स्थिर बनाए रखें।
o सिर को नीचे की तरफ झुकाएं और टांगों के बीच से झांककर देखते रहें।
o इसी स्थिति में 15-30 सेकेंड तक स्थिर बने रहें।
o जब आप इस स्थिति को छोड़ना चाहें तो पेट और नीचे के अंगों को सिकोड़ें।
o सांस को भीतर की ओर खींचें और हाथों को हिप्स पर रखें।
o धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठें और सामान्य होकर खड़े हो जाएं।
11. Vajrasana/वज्रासन
ज्रासन करने का तरीका –
वज्रासन करने के फायदे के बारे में जानने के बाद इसे अपने रूटीन में शामिल करने की सोच रहे हैं, तो वज्रासन करने की विधि जानना जरूरी है। यह विधि कुछ इस प्रकार है :
o वज्रासन करने के लिए सबसे पहले घुटनों के बल जमीन पर बैठ जाएं।
o इस दौरान दोनों पैरों के अंगूठे को साथ में मिलाएं और एड़ियों को अलग रखें।
o अब अपने नितंबों को एड़ियों पर टिकाएं।
o फिर हथेलियां को घुटनों पर रख दें।
o इस दौरान अपनी पीठ और सिर को सीधा रखें।
o दोनों घुटनों को भी आपस में मिलाकर रखें।
o अब आंखें बंद कर लें और सामान्य रूप से सांस लेते रहें।
o इस अवस्था में पांच से 10 मिनट तक बैठने की कोशिश करें।
o अगर घुटनों पर ज्यादा दर्द हो रहा है, तो शरीर के साथ जबरदस्ती न करें। एक-दो मिनट के बाद उठ जाएं और धीरे-धीरे रोजाना इसका समय बढ़ाते रहें।
वज्रासन के फायदे
o मधुमेह के लिए
o मांसपेशियों की मजबूती
o हृदय और मस्तिष्क में सुधार
o दर्द से राहत
o पाचन के लिए
o रक्त संचार में सुधार
12. Vrischikasana/वृश्चिकासन
वृश्चिकासन करने का तरीका –
§ सबसे पहले साफ एवं खुली जगह तलाश करें।
§ जमीन पर कोई दरी या योगा मेट अवश्य बिछा लें।
§ अब अपने घुटने टेककर जमीन पर बैठ जाये।
§ इसके पश्चात अपने हाथों की कोहनियों को जमीन के समानान्तर रखें।
§ दोनों कोहनियों की बीच की दुरी कंधों के बराबर हो।
§ सांस को छोड़ते हुए पैरों और कमर को ऊपर की ओर लेकर शीर्षासन जैसी स्थिति बनाये।
§ इसके बाद धीरे-धीरे अपने कमर और घुटनों को मोड़े।
§ मोड़ते हुए पैरों के पंजों को अपने सिर के ऊपर लाने का प्रयास करें।
§ अपने सिर को ऊपर की तरफ रखने का प्रयास करें।
§ अपने कमर को इतना मोड़े की आपके पँजे आपके सिर को छू लें।
§ कोहनियो की जमीन पर स्थिति किसी समकोण की तरह हो।
§ जितनी देर रुक सकते है रुके फिर अपनी मूल अवस्था में वापस आ जाये।
वृश्चिकासन के फायदे –
1. पाचन क्रिया को दुरुस्त करने में रामबाण होता है क्योकि इस आसन को करते समय हमारे पेट की माँसपेशियो पर खिचाव पैदा होता है जिससे की पाचन अंग ज्यादा सक्रिय होने लगते है जो हमारे पाचन शक्ति को मजबूत बनाने का काम भी करते है।
2. शरीर में वजन को कम करने में अहम भूमिका निभाता है चूकि यह आसन बहुत ज्यादा कठिन होता है इसके अभ्यास के समय शरीर के सारे मसल्स एक्टिव हो जाते है इससे शरीर में अधिक ऊर्जा का नाश होता है और यही वो कारण है जिससे शरीर में जमा अतिरिक्त फैट बर्न होना शुरू हो जाता है।
3. इस आसन को करते समय हमारे सिर की ओर रक्त का प्रवाह अधिक होने से हमारे चेहरे में तेज बढ़ता है तथा उसमे प्राकृतिक चमक भी प्रदान करता है।
4. मेरुदंड और हमारे गर्दन में होने वाले कई रोगों में वृश्चिकासन लाभ पहुँचाता है।
5. चूकि इस आसन को करते समय हमारे हाथ, कंधे और कोहनियों पर शरीर का सम्पूर्ण वजन होता है जिसके कारण समय के साथ ये अंग मजबूत बनते जाते है।
6. कई योग गुरुओं का मानना है की इसके निरन्तर अभ्यास से मनुष्य के भीतर मौजूद क्रोध, लालच, ईर्ष्या और अहंकार समाप्त हो जाते है। जो भी लोग इसका अभ्यास करते है उनमे दयाशीलता और प्रेम भावना का जन्म होने लगता है।
7. इस आसन से हमारे कुल्हें की माँसपेशियो, हमारे हेमस्ट्रिंग की माँसपेशियो को अच्छा स्ट्रेच मिलता है साथ में यहाँ के मसल्स समय के साथ मजबूत बनते है।
8. जो लोग बहुत ज्यादा चिंता करते है या किसी कारण से वे मानसिक रूप से परेशान रहते है उन लोगो को वृश्चिकासन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए इससे मन शांत होता है और मानसिक तनाव काफी हद तक दूर होते है।
9. मन को एकाग्र करने में एवं अस्थिर मन को स्थिर करने में वृश्चिकासन हमारी काफी मदद करता है। इससे आपका फोकस बढ़ता है साथ ही किसी कार्य की कुशलता बढ़ाने में भी मदद करता है।
10. अगर कम उम्र में या असमय आपके बाल सफेद हो रहे है तो घबराये नहीं इस आसन को नियमित करे इससे होगा यह की आपके बाल काले होने शुरू हो जायेंगे साथ ही असमय बालों का सफेद होना भी बंद हो जायेगा।
11. इस आसन में कमर और रीढ़ की हड्डी में बहुत अधिक खिचाव होता है जिससे इन माँसपेशियो में रक्त का प्रवाह अधिक होता है। नियमित इसके अभ्यास से समय के साथ कमर और रीढ़ की हड्डी लचीली बनती है और बुढ़ापे तक बिल्कुल सीधी बनी रहती है।
12. मूत्र सम्बंधित अनेको विकार को दूर करने में वृश्चिकासन अति सक्षम होता है। जिससे किसी भी प्रकार का मूत्र विकार आपको नहीं होता है।
13. इस आसन से हमारे फेफड़े मजबूत बनते है साथ ही हमारे फेफड़ो को कार्यक्षमता का भी विकास होता है। क्योकि इस आसन को करते समय हमारी छाती पर खिचाव होता है जिससे सांस लेने की प्रणाली बेहतर हो जाती है।
14. शरीर में रक्त-परिसंचरण को बेहतर बनाता है जिससे शरीर के समस्त भागों में रक्त का प्रवाह सुचारु और पर्याप्त मात्रा में होता है।
15. यौन सम्बन्धी रोगों का नाश करता है जिससे यौन विकार समाप्त हो जाते है। साथ ही हमारे प्रजनन अंगो के विकारों को दूर करने में भी सक्षम माना जाता है।
स्काउट के हस्ताक्षर
पेट्रोल लीडर के हस्ताक्षर स्काउट मास्टर के हस्ताक्षर
CORT OF HONOUR (COH)
The specimen of COH of ………………………... Scout Troop / Guide Company of KendriyaVidyalaya ….…………………………. met at (place)……Scout Corner at (Time)…………….am/pm on (date) .............................resolved to recommend the Scout / Guide ……………………………………...………….…. for the…………………………………………. (Name of badge)
Members Signature Sign. theChairman
1. ………………………………..
2. ………………………………...
3. ………………………………. (Name of the Chairman)
4. ………………………………
Signature of SM / GC Signature of District Commissioner (S/G)
Date………………………
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YOG CERTIFICATE
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